प्रत्येक स्तर के पाठ्यक्रम में पूर्ण पृथकता होनी चाहिए ताकि छात्र को अगली कक्षा में बिल्कुल अलग अनुभव हो।
पाठ्यक्रम का निर्माण व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
किसी भी स्तर के पाठ्यविषयों की संख्या इतनी अधिक नहीं होनी चाहिए कि छात्र को विषय बोझ लगने लगे।
विभिन्न विषयों के लिये जो पाठ्यक्रम निर्धारित किया जाये, उसमें समय को ध्यान में रखा जाना चाहिये ताकि वर्ष भर का पाठ्यक्रम वर्ष में पूरा हो सके।