जॉन रॉल्स ने इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया है। वह तर्क करते हैं कि निष्पक्ष और न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता यही है कि हम खुद को ऐसी
परिस्थिति में होने की कल्पना करें जहाँ हमें यह निर्णय लेना है कि समाज को कैसे संगठित
किया जाय। हम नहीं जानते कि किस किस्म के परिवार में हम जन्म लेंगे, हम ‘उच्च’ जाति के परिवार में पैदा होंगे या ‘निम्न’ जाति में, धनि होंगे या गरीब, सुविधा-संपन्न होंगे या सुविधाहीन।रॉल्स कहते हैं कि अगर हमें यह नहीं मालूम हो, कि हम कौन होंगे और भविष्य के समाज में हमारे लिए कौन से विकल्प खुले होंगे, तब हम भविष्य के उस समाज के नियमों और संगठन के बारे में जिस निर्णय का समर्थन करेंगे, वह तमाम सदस्यों के लिए अच्छा होगा।रॉल्स ने इसे ‘अज्ञानता के आवरण’ में सोचना कहा है। वे आशा करते हैं कि समाज में अपने संभावित स्थान और हैसियत के बारे में पूर्ण अज्ञानता की हालत में हर आदमी, आमतौर पर जैसे सब करते हैं, अपने खुद के हितों को ध्यान में रखकर फैसला करेगा। क्योंकि कोई नही जानता कि वह कौन होगा और उसके लिए क्या लाभप्रद होगा, इसलिए हर कोई सबसे बुरी स्थिति के मद्देनजर समाज की कल्पना करेगा। खुद के लिए सोच-विचार कर सकने वाले व्यक्ति के सामने यह स्पष्ट रहेगा कि जो जन्म से सुविधसंपन्न हैं, वे कुछ विशेष अवसरों का उपभोग करेंगे। लेकिन दुर्भाग्य से यदि उनका जन्म समाज के वंचित तबके में हो जहाँ वैसा कोई अवसर न मिले, तब क्या होगा? इसलिए, अपने स्वार्थ में काम करने वाले हर व्यक्ति के लिए यही उचित होगा कि वह संगठन के ऐसे नियमों के बारे में सोचे जो कमजोर तबके के लिए यथोचित अवसर सुनिश्चित कर सके । इस प्रयास से दिखेगा कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधन सभी लोगों को प्राप्त होगे - चाहे वे उच्च वर्ग के हो या न हों।