एक प्रथा है मुताह. वह एक तरह का फौरी विवाह है. उसके दिन तय होते हैं कि वह दस दिन, सौ दिन या कुछ निर्धारित दिन का हो सकता है. हालांकि, इसके ऐतिहासिक संदर्भ पर मुझे शक है लेकिन माना जाता है कि जब फौजें चलती थीं तो जहां फतह मिलती थी, सैनिक वहां की औरतों से बलात्कार करते थे. अगर बच्चे हो जाते थे तो वे नाजायज कहे जाते थे. इसलिए फौरी विवाह का सिस्टम बनाया गया. इसमें जितने दिन का करार होगा, उसके बाद वह खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा. हाल में कई मामले ऐसे सामने आए हैं कि खाड़ी देशों से महीने-दो महीने के लिए मर्द वापस आते हैं तो उनको वक्त बिताने के लिए कोई चाहिए. जिम्मेदारी भी नहीं निभानी है. दूसरे उनको इस्लाम का भी डर है कि जन्नत मिलेगी कि नहीं मिलेगी. मजा भी करना है. तो वे यहां आकर इस तरह की फौरी शादियां करते हैं. इसमें तो एक बार कोई लड़की फंस गई तो उसकी शादी कभी नहीं होती. फिर उसे मुताही बोलते हैं. जैसे-जैसे उसकी जवानी ढलती है, उसके पैसे घटते जाते हैं. यहां तक होता है कि कई औरतों को सिर्फ खाने-कपड़े पर रखा जाता है, उनका यौन उत्पीड़न किया जाता है और वे घर का काम भी करती हैं. यह एक तरह की कानूनी वेश्यावृत्ति है. इसमें मौलवी भी खबर रखते हैं कि किसके घर की लड़की सयानी हो गई है और किसके घर का लड़का लौटने वाला है. वे इसमेंबिचौलिये की भूमिका निभाते हैं. अब ये सब मसले कभी नहीं उठते कि मुस्लिम समुदाय को भी इस पर बात करने में शर्म आती है. इसे सिर्फ महिलाएं झेलती हैं.
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