जीवन ही सत्य नहीं है तो जीवन का क्या सत्य हो सकता है।। सत्य तो आप हो,पर सारे दृष्यमान नश्वर वस्तुओं को जबरन सत्य माने हुए हो। तबतक सबकुछ सत्य या असत्य। सुन्दर या बदसुरत,धर्म या अधर्म दिखाई देगा,तबतक जो कुछ भी संसार में दिखाई दे रहा है,सब सत्य प्रतीत होता है ।।