मैग्मा और लावा दोनों ही तरल पदार्थ होते हैं और उनमें तरल चट्टानों की उपस्थिति होती है। दोनों में फर्क बस उनके स्थान का है।
मैग्मा : यह धरती के भीतर पाया जाता है। चट्टानों , वाष्पशील पदार्थों आदि से बना हुआ मैग्मा एक ज्वालामुखी के नीचे बने हुए मैग्मा कक्ष में पाया जाता है। जब इसका तापमान अधिक हो जाता है और यह ज्वालामुखी या आस पास की धरती पर अधिक दबाव बनाने लगता है , तो यह बाहर फूट पड़ता है। मैग्मा धरती के अलावा और भी कई ग्रहों पर पाया जाता है।
लावा : जब यह मैग्मा धरती के बाहर निकल आता है, तो इसका नाम लावा हो जाता है। मोटाई और चिपचिपापन के आधार पर विभिन्न प्रकार के लावा बताये जाते हैं। जब इसका बहाव बंद हो जाता है , तब यह ठोस हो जाता है और आतशी चट्टानें बनता है।
लावा भले ही बहुत चिपचिपा होता है , पर ये बहुत दूरी तय कर सकता है इसलिए ज्वालामुखी के आस पास के १ किमी दायरे में कोई भी जन जीवन पाना मुश्किल होता है । इसकी गर्मी इतनी होती है कि सब कुछ जल जाता है ।
भारत में एक ही ज्वालामुखी है । यह अंडमान निकोबार के द्वीप पर स्थित है ।